त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ थोड़ा जल स्वयं पी लें और मिश्री प्रसाद के रूप में बांट दें। कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख https://shivchalisas.com
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